सञ्जय सुदामा
बज्जी संस्कृतिमे खेलौना बहुत ही बालमनोबैज्ञानिक वस्तु हए । एकर प्रयोग हर बंज्जी लइक सब करले । हमहु कएले रही । हमरो तिनगो लइका करले । समय समयपर रङविरङके खेलैनाके फरमाइससे हकरो जेव ढिला होइत रहले ।
हम अपने खेलैना बनाइ आ खेली । बाबुके जेव कटाबेके बाते नरहे । ओइसहु हुन अधिकांश घरसे दुर पंजाब रहस । लमरदारी करस उहाँ ।
कम उमेरमे सादी भेल जल्दिए तिनगो लइकाके बाप बनगेली । एगो लइकाके लइका नकअलई जइसन मान्यतासे कहु चाहेँ वंश परम्पराके मोह या फेन तर्पन कर्मके चाहसे प्रवेशिका उत्तीर्ण होइते बाबु बिआह कदेलन ।
एई बिआहप्रति हम घरमे विरोध जनएले रही “तोहरा बिआह करहीके होतऊ ।” बाबु हमरापर लमरदारी झारले रहस । माई समझाबुझाके कहले रहे, “मे वंशके एकेगो त चिराग छे । जँहा रहइछे तहाँ इजोत जहाँ नरहइछे तहाँ अन्हार । केन्हु चलजाइछे त भरदिन तोहरेपर संसा टङाएल रहले । सादी बिआह कले बालबच्चा होतऊ हमरो खेलौना होजाई । ओही सके जओर हमहु भुलाएल रहम । तू कहुँ रहबे त मतलब नरही ।” आज हमरा माईके तिन तिनगो खेलैना हए । हुन केतना मन लागले हुने जान्तन । हम त हुनका पिन्डोगे देखइछी ।
कहेके मतलब हमरा तिनगो लइका हए । तिनुके बहुत खेलैना किन्ली । कछुवा, जिप, हेलिकप्टर, प्लेन, टूक, खरहाजइसन प्लास्टिकके खेलौना स कुछ कपाडाके कुत्ता, बाघ, बानरजइसन टेडिबियर स किन्ली । कतेक खेलौना इआदो नहए । हमरा तिनु लइकामे जेठकी बेटी खेलैनासे कम खेलेसकल । अबगे खेलौनासे खेलेबाली भेल कि हमर छोटकी बेटी भी खेलौना छिनछोर करेबाली होगेल ।
ई खेलौना स पुरे होकरे बेरी नकिनौल । ओकरा बेर त कुछ सीमित ही खेलौना रहे । जब छटकी सुतरहे चाहेँ दाई फुआ जओरे केन्हु घुमे चलजाए तब जेथकी खेलौनासे बडा सहेजके जगहपर राखदेबे । हमनी एकर नाम सिर्जना राखले रही । जब जरुरी बुझाए मन मिलेबाली सहेलीके बोलाके खेलौनासे खेललेबे आ मतारीसे अनुमति लेके ठिक जगहपर राखियो देबे । इहो मौका ओकरा छोटकीके गैरमौजुदगीमे ही मिले । सिर्जनासे हमनी त खुस रहबे करी, टोलापरोसा भी एकरा स्वभावसे सन्तुष्ट रहे ।
आखिर रहे त लइके । दुनू बहिनी एकोगो खेलौनाला झगरा करेलागे । सिर्जना ऊ अपनो खेलौना लेके खेले बैठे त छोटकी छिनलेबे । भरदिन बिरनाबिरनी, कटराकुटरी, धुम्साधुमसी अङनामे चलेलागे ।
तइको छोटकीके डा“टी त घर मे टेँ.. पो..शुरु होजाय । हारदाके सिर्जनाके सम्झादी । फेन बिहानसे उहे हाल । एक दिन त ओकर मतारी सिर्जनाके निमनसे धमधमादेल ।
“छोटकी मानली लइका हई, ई कओन बुढलइका हई । भरदिन एकरे जओरे लर बेसाहइत रहले । बाप हए त भरदिन क्रिकेटमे बेहाल रहले । लइका सके सम्झाबेके बाते नहए । देखम न तेन्दुरकर बनिहन ।” अङनामे बढनी लेलही लोकर मतारी चिलाइत रहे । सिर्जनाके दाई ओकर घिचके लेगेल आ कोराम धके दुहरीपर बइठगेल । कोरेमे बेचारी सुस्कइत रहे ।
ओई रात सिर्जनाके मतारी सुतेके बेर ओकर बहुत समझएलक, “देख अब तू लम्हर भेले छोट्की अभी बउआ हई । कुछोला ऊ रेन करतई तेसे तुहू ओकर जओरे रेन करबे ? ऊ नरहलई त खेलौना लेके खेलबे करइछे । तोहर बउआ हऊ ऊ ।
केन दिदी कहलऊ । कोनो सामान होखे पहिले ओकरे दी तब अपने ली । सरदारके हक होइछई । ऊ खेलइत हए त पहिले ओकरे खेलेदी तब अपने खेली । तू त सम्झेबाली भेले । ऊ त बउए हई ।” “हूं उहे एगो बउआ हऊ ।” कहके सिर्जना घोघिआके शान्त होगेल । ओकरा घोघिआइपर हमरा दुनू प्रानीके मुस्कान जुधगेलक ।
परसोँखानी ओकरा गाँओके कृष्णाष्ठमी मेला धुमाबे लेगेली । छोट्कीके छोर देली । एकर मानसिक क्षतिपूर्ति करेके रहे हमरा । हमरा जओरे अकेले मेला घुमेके अओसर पाके बहुत खुस रहे । “भले छोटकीके नलएला ह । केना हमरा ममिसे पिटबादेलक ।” मनके दुख हमरालङ दू तिनबेर परोसले रहे । हम हँमे हँ मिलादी ।
मेलाके रमझम देखके ऊ खिललखिलल लेखा लगाइत रहे । वास्तवमे मेला लइका स के इच्छा आ सपनाके मेला रहले । कतेक दिन जोर लाके बाद आबले ई दिन । मेलामे लागल अव्यवस्थित स्टल भितर के चिजविज लइका स के आकर्षित करइत रहे । मेलामे रङविरङके पिपहु बजाबई, झुनझुना बजाबई लइका स केनेसे केने निकले पँइसे थाहे नलागे । हमहु सिर्जनाके एगो पिपहु बजाबे लागल आ हमर औंरी पकरके स्टलके कतिकति घुमेलागल ।
स्टलके खेलौना सबके बाडा स्थिरसे बर्णन करेलागल, “ऊ घोडा केतना निमन हई, कि न ? चको लागल हई । पिछासे डोरी घिचतई त गुरके लागतई । बुझतई चल्ते हई । हहह….। एहिना ऊ बहुतो खेलोनाके वर्णन करइतगेल । हम ओकर स्टलके कातेकाते घुमाबइत गेली । अन्तमे ओकरासे पछुली, “तोहरा सबसे निमन कौन खेलौना लागलऊ ? कह किन अिऊ ?” ओकर तइकहुगो प्लास्टिकके किचेन सेट पसन्द रहे ।
किनदेली । ओकराबाद, “हो पापा पैसा आउरो हओ ? खरहा किनदेबा ?” सिर्जना हमरा पर्सपर पहानुभूति देखएलक । हम ओकरासे पुछली, “पैसा दिआ काहे पुछले ह ?” “ ममी कहले रहलइह पैसा कम हई पापाके हरान नकरिअही ।”
हमरा गराभुकूर लागेल । एगो बेरोजगार युवकके प्रति पत्नी आ बेटी दुनूके सहानुभूति ‘ धन्य भगवान ’ हमरा अहमपर निर्दोष प्रहार रहे ई । हम बेटीके हँमे हँ मिलाके घरेला जिलेबी सनेस किनके मेलासे निकल गेली ।
बिहानखानीसे सिर्जना किचेन सेटसे माटके दाल, भात, तरकारी बनाके खेले लागल । एई खेलौनासे ऊ बहुत दिनतक खेललक । ओकरा खेलमे स्वतन्त्रता कहाँ रहे । बिचबिचमे छोटकी आतङ्क झेलेके परे । समय समयपर दुनू लडियोजाए । छोट भेलाके केडिट छोटकीके मिले । ऊ डाँटसे बचजाए । सिर्जनाके मतारीके डाँट आ आ“ख सहेके परे ।
बात हए बरहथवाके । हम सपरिवार अपन पुस्तैनी गाओ सलेमपुर छोरके उहा“ रहे लागल रही । काम रहे शिक्षणके । हम बरहथबेमे दिव्यज्योति अङरेजी स्कुलमे नेपाली पढाई । उहा“ काम आ डेरा यादव सर खोज देले रहस । हमरा दुनू गोराके नाम एके भेलासे या साहित्यमे दुनूके रुचि समान भेलासे कहू हमनीके खुब बात मिले । एकदोसराके मितजी कहके हमनी बोलाई । हुनकासे उमरमे कुछ छोट भेलासे हुनकामे हमराप्रति मित्रभाव का आ भातृभाव जादा देखी । हमरा अनुजलेखा स्नेह हुन ।
भोलाबाबाके कृपासे हमर तिसर सन्तान दिनु भी खेलौनाुे खेलेबाला होगेल । आइखानी खेलौना किनबाबेके आ बिहानखानी खेलौना फोरके फेकदेबेके । ओकर विशेषता हए । खुटबाङरमे भी खुटबाङर हए ऊ । एई खेलौना शत्रुसे हमरा जेवके हाल की भेल की भेल नकहम । छोटकीके दबंगइ घसर लागल । एकरा उपस्थितिसे सिर्जनामे होसियार होएके जिम्बारी बढगेल र हे । कुछ बहुत हदतक होसिहारो होगेल रहे ऊ ।
छोटकीके दिपुके झगरा सिर्जना छोराबेके कोसिस करे । कहे, “गे बउआ ‘ दिपु अभी बउआ हई । तू अब लम्हर भेले । खेलौनासे अब ऊ खेलतई । केना तू हमरासे खेलौना छिनला । हम तोरा छोरदिअओ । ओहिना ई बउआ हई, छोरदही झगरा नकर ।” युकेजीमे पढेबाली लरकी एना सम्झबे जेना ऊ अपने बुढिआ दाई होखे । बेचारी हहर जाए ।
रिपुलङ केकरो दोहाई जचले । एकेलङ रहलासे दुनू मितके श्रीमती बहिनलेखा घनिष्ट होगेल । लइका स भी एना घुललमिलल कि मानू दुनू घरके लइका एके घरके होखे । मितजीके छोट सुखी परिवार रहे । जेना हुन दुगोरे रहस ओहिना लइको दुगो । सिआ आ सज्जन । भले सिआ छौ कक्ष।मे पढे लेकिन सङहत ओकर सिर्जनासे रहे । बापमतारीलेखिन इहो दुनू घनिष्ट होगेल रहे ।
जओरे स्कुल जाएके, साथे घर मे बैठके गृहकार्य करेके दैनिकी रहे दुनूके । हम दुनूप्रानी अपना दुनू बेटीके स्वभावगत भिन्नतापर बहुत बात करी आ सिर्जना अबहिए कतेका होसिआर होगेल कहके सन्तोषके साँस फेरी । सिर्जनाके सिआकिहाँ जाएके पूरा छुट रहे । ओकरासे ओई घरमे कोनो परसानी नरहे । सभे खुसी ही रहे । साएद सज्जनक एकरासे परसानी रहे । ऊ हरहमेसा एकर कम्पलेन हमरालङ करे । अइसहु एकतुरिआमे नपटलई । आखिर सज्जन कुछ सरारती लइका रहे । सिर्जनाके स्वभावसे हम निफिकिर रही । ऊ भला कोनो गलती करिएन सकले ।
सज्जन आ सिर्जना दुनू कक्षा साथी हए । दुनूमे फेअर आदानप्रदान आ गृहकार्य मिलल नमिललके सञ्चार भी होइत रहले । एकाधबेर दुनूमे फुलाफुलीके स्थिति भी देखलगेल अए । भले सज्जन सरारती होखो हए त लमरा ऊ बरमहल कम्पलेन करइत रहले, “अङ्कल जी म टयुशन पढिरहेको बेला सिर्जना दिदी मेरो खेलौनाले खेल्नु हुन्छ ।” ओकर बातपर हम जब भी मुस्कान भरदी । हम ओकरा कम्पलेनके एहिना गोलिआदी । ऊ चिढे, हा फुस्लादी । एनेओनेके बातमे भुलादी ।
हम मितजीके साथे हुनका ओसारामे गपसप करइत रही । सज्जन हो टयुशन पढइत रहे ।
निर्जना चोरलेखिन एनेओने लओसिन सज्जनके माईके कहइत हए, “अन्टी, सज्जन बउआके खेलौनासे खेलिअओ तइका ?” अन्टी मुस्काके अनुमति भरदेलक आ आँखेआँखमे खेलौना खेलके राखदेबेके इसारा जडदेलक । अन्टी भान्सा घरले पइँसगेल ओने सिर्जना बडा स्थिरसे फर्सपर बइठके दहिना हाँथसे कार पकरके सामने अर्धवृताकार घुमाबेलागल ।
हमरा नजर नभमे फल्यासब्याकलेखा सज्जनके कम्पलेन सब नाचेलागल । नाचेलागल सिर्जना आ ओकर खेलौनाके पहिलका दृश्य सब । ओकरा मतारीके डाँट, सम्झाइ–बुझाइ, छोटकीके आतङ्क, दिपुके दबंगइ, मेलाके दृश्य, ई सब हमरा लुकारी बनेके झोँकारे लागल ।
हम आहत भेल जाइत रही । बुझाए हमरा निचासे धर्ती खसकगेल । ओो सिर्जनाके कान चौकन्य रहे । जब सज्जन मिसलङ कुछो बोले तब एकर हाँथ फर्सपर ससतर्क रुकजाए । सज्जन चुप होजाए, एकरा हांथके इसारापर कार अर्धवृताकार फर्सपर घमेलागे । हम ओकरा देखइत रही । ओकर निर्दोष नजर हमरातक नपुगल रहे । भले ही ऊ सज्जनके पलपलके हलचलपर सतर्क रहे मुदा ओकर अपना बापके उपस्थितिके भनकतक नरहे । नजर एकरुपसे ओकारापर प्रेम आ सहानुभूति वर्षाबइत रहे । बेचारीके एई वर्षामे भिजेके होस कहां ।
खेलौनासे मन भरइत ऊ खेलौनाके सही जगहपर राखके अन्टीसे अनुमति लेलक आ घरेसे निकले लागल । सज्जन अपना कक्षसे सशङ्कित मुद्रामे चिलएलक, “आमा बाहिर को जानुभएछ ?” क ओकरा मतारीसे की जबाब मिलल ।
सिर्जनाप्रति हमरा भितर पितृवात्सल्य उमरके आएल । दौर के ओकर पँजिआबे चाहली तबतक ऊ बाहरके केमारी बाहरेसे सटाके डेराओर दौरगेल । लेखक सुदामा,बलरा १०, सर्लाहीका हुन् ।

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